Tuesday, July 2, 2013

Intezaar Tumhara

इंतज़ार तुम्हारा 
ना जाने क्या हुआ है, प्रिये 
कि अब इल्म ही ना रहा तुम्हें,  
इस बात का 
और ना शेष है 
'एहसास' उस अटूट, सुनहरे से 
अपने बेतकल्लुफ प्यार का ! 
कि किस क़दर टूटकर चाहा था, 
मैनें तुम्हें 
सारी दुनिया को दरकिनार, अपने 
साथ ले आया था,  
मैं ही तो तुम्हें ! 
फिर क्या हुआ ?? 
जो आज याद करता हूँ 
उन गुज़रे पलों को 
जब तुम्हारे आगमन से पहले ही, 
तुम्हारी हँसी,  
मुझ तक पहुँच जाया करती थी ! 
तू भी तो, पंखुरी बन, मेरी बाहों में 
कैसी बेधड़क, इठलाया करती थी !  
वो, खूबसूरत केशु तेरे, 
उनकी खुशबू,  
अब तलक भूल नहीं पाया हूँ 
-हमसफर, मैं इस दुनिया में  
सिर्फ़ तेरे लिए ही तो आया हूँ ! 
पर ना जाने कैसे 
अब मैं, तुझको वो पहले सा  
अज़ीज़ ही ना रहा 
मेरे कर्तव्यों के सिवाय 
प्यार वो तेरा पहले सा 
उस क़दर मुझ पर बे-इंतेहाँ 
हावी होता क्यूँ ना रहा ! 
टूट गया हूँ, मैं 
बेहद गुमसुम, लाचार सा 
अपनी ही दुनिया में 
खोया हुआ, असहाय सा 
असमंज़स में ज़रूर हूँ 
पर फिर भी 
'इंतज़ार' है, मुझे तेरा ! 
तभी तो 
आँखों में, धूमिल होती 
उम्मीद की हल्की, 
उस किरण को लिए 
आज भी 
बैठा हूँ, उसी बेंच पर ... 
जहाँ हम-तुम पहली बार 
मिले थे !! 

प्रीति 'अज्ञात' 

No comments:

Post a Comment