Sunday, July 21, 2013

Jab tum haste ho...!

जब तुम हंसते हो ! 
 
जब तुम हंसते हो 
तो मेरे मन में भी उसी वक़्त 
खिल उठती हैं 
मोगरे की हज़ारों कलियाँ 
और महक उठती हूँ मैं 
उन कदमों की हटें सुनकर 
और लगता है, कि इस 
हँसी का रास्ता 
अभी मेरे दिल से ही तो 
होकर गुजरा है. 
उस वक़्त 
महसूस करती हूँ तुम्हें 
अपने बेहद पास 
और जी लेती हूँ इस एहसास को 
ठीक उसी तरह 
जैसे मेरे लबों से होकर 
तुम मुस्कुराए हो. 
गर्व सा हो उठता है, खुद पर 
बस ये सोचकर ही, कि 
इस मुस्कुराहट के पीछे 
कहीं मैं छुपी हूँ. 
और अब, मर मिटी हूँ मैं 
तेरे इसी चेहरे पर 
जो सामने ना हो, तो भी 
दिखाई दे जाता है 
हर आईने में, बस तेरा ही तो 
अक्स नज़र आता है 
वादा है अब ये मेरा, तुझसे 
रहूंगी उम्र भर, हर जनम 
यूँ ही साथ हरपल तेरे 
क्या करूँ, कुछ भी ना रहा 
अब बस मैं मेरे 
मुस्कानों के तार, जुड़ गये हैं 
लिपटकर बेपनाह 
एक-दूसरे से 
कुछ इस तरह अब 
तेरे - मेरे. 
 

प्रीति 'अज्ञात' 

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