Tuesday, December 10, 2013

कुछ यूँ भी.....

ये दिखता कठोर है
पर है मुलायम
चीरा जा सकता है
इसे बेहद आसानी से.
ज्वलनशील है
पानी में मिलते ही.
लगता तो है,
बड़ा चमकीला और साफ
पर ज़्यादा रोशनी में
खो देता है अपनी चमक
दिखता है तब फ़ीका सा
उदासी की रंगत लिए हुए.

उबलने में लेता है
बहुत ही वक़्त
पर पिघल जाता है 
बिल्कुल आसानी से.
ज़्यादा उपयोग से
डर है, रक़्त-चाप के
बढ़ जाने का
संपर्क में आने पर
साँस लेना ही मुश्किल
जो मिली नज़रें, तो
ख़तरा है, कि फिर कभी
कुछ दिखाई ही  दे,

उत्तम संचालक है
ऊष्मा और विद्युत-तरंगों का
इसलिए ही तो
देता है रोशनी, हर घर में.
परोपकारी इतना कि
रासायनिक-प्रक्रिया के दौरान
'बॉन्ड' बनाने के लिए
दे देता है ये अपना 
'नकारात्मक-आवेश' भी
खुश होकर.
कहीं इसे "दिल" तो
नहीं समझ बैठे आप ?
या ख़ुदा ! ये तो
"सोडियम'' के 'भौतिक-गुण' हैं...

प्रीति 'अज्ञात' @ :)

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