Thursday, October 1, 2015

सुनो, भगवान.....

सुनो, भगवान...
आज भी वही हुआ
जो होता आया है
अब इन बातों से
ज्यादा हैरानी नहीं होती
हाँ, होता है मन उदास
कुछेक आँसू भी
अनायास ढुलक पड़ते हैं
मुट्ठियां भिंचती हैं
बेवकूफ़ कलेजा भी 
मुँह को आता है
रुंधता है गला
एक-दो दिन 
और फिर वही दिनचर्या
सब कुछ सामान्य
सच,'इंसानी जीवन' कितना
सस्ता हो चला है यहाँ

पता ही होगा न तुम्हें तो 
तुम्हारी ही बनाई दुनिया जो है
यहाँ तुमसे ज़रूरी कुछ भी नहीं
तुम्हारे अलग-अलग 
नामों की आड़ में
और उन्हीं नामों से बनी
पूजनीय किताबों में
होता है तुम्हारा ख़ूब ज़िक्र
कि तुम ये कर सकते
तुम वो कर सकते
तुम सर्वदृष्टा,
तुम सर्वज्ञानी,
तुम पालनहारा,
जग अज्ञानी 
तुम निर्माता
तुम दुख-हर्ता
तुम भाग्य-विधाता
तुम ही सबके दाता

सुना है
तुम्हारी अनुमति के बिना
एक पत्ता भी नही हिलता
ये प्राणवायु, नदिया की धारा
समंदर, पहाड़, पत्थर
सब में समाहित हो तुम

अब एक बात बताओ 
जब ये सब सच है
तो एक बार आगे बढ़कर
तुम खुद ही कभी अपने ऊपर 
सारा दोष क्यूँ नहीं ले लेते
हटते क्यूँ नहीं
हम सबकी दुनिया से
क्या तुम्हें समझ नहीं आता
इस सब की जड़ 
'बस तुम ही रहे हो सदैव'

या फिर ऐसा करो
एक ही झटके में
ख़त्म करदो ये दुनिया
और करो पुनर्निर्माण
इंसानियत का
बस, इस बार
उस पर
मेड इन हिंदू, मुस्लिम,
सिख, ईसाई, जैन,पारसी
या कोई अन्य धर्म का
ठप्पा लगाकर न भेजना
बस, 'मेड बाय गॉड' काफ़ी है  

और क्या कहूँ, मेरे दोस्त
जी बहुत व्यथित है 
जब रोक नहीं सकते
मानवता की लाश को
हर गली चौराहे पर 
दिन-प्रतिदिन गिरने से
तो हर बात का
श्रेय भी क्यूँ लेते हो 
छोड़ ही दो न 
हमें अकेला हमारे हाल पर 
प्लीज फॉर योर ओन सेक 
जीने दो हमें चैन से अब 
तुम्हारे नाम के बिना!
© 2015 प्रीति 'अज्ञात'. सर्वाधिकार सुरक्षित 

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