Tuesday, December 29, 2015

कितने जीवन??

कितने जीवन तुमको मिले हैं
इक अपने जीने के लिए?

तुम जल रहे या जला रहे  
अपनों को जिस बात पे 
ख़ुद को ही तो छल रहे न 
ज़ख्म सीने के लिए 

मौत भी है ज़िंदगी-सी 
ख़ुद-ब-ख़ुद आ जाएगी 
इस वक़्त को दुआएं दे 
दो घूँट पीने के लिए 

ग़म की कमी खलती नहीं 
इक याद बस मिलती नहीं 
नम मोतियों की माला बिंधती 
दिल के नगीने के लिए

कोई दर्द समझे कब हुआ है 
रिश्ते उड़ता-सा धुंआ है 
बादलों में ढूंढ लो पल 
अंतिम महीने के लिए 

कितने जीवन तुमको मिले हैं
इक अपने जीने के लिए?
- प्रीति 'अज्ञात'

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