Saturday, July 1, 2017

बात अभी खुली नहीं!

सुना है सलीम चाचा ने कल
अपनी प्रेस की दुकान जल्दी बंद कर  
ख़ूब जलेबियाँ खाईं
काम वाली कजरी भी 
रात से दिया-बाती करे बैठी है 
इधर सब्जी बेचने वाला चंदू भी 
सूरज से पहले ढेला भर तरकारी ले आया
स्वयं से दोगुने बोझ को ढोते हुए भी 
कल्लू मजदूर आज मुस्कुरा रहा
सफाई वाली काकी ने भी 
अँधेरे ही सारा कचरा जला 
सबकी सुबह रोशन कर दी 
ये सारे और इनसे कई 
रात भर जश्न में रहे
उधर चौराहों पर कई लोग 
अब तक मुँह फुलाए 
धरना दिए बैठे हैं 
भोली समझ का फेर 
या नासमझी का अनशन
बात अभी ठीक से खुली नहीं!
- प्रीति 'अज्ञात'  कॉपीराइट © 2017

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